महाविद्यालय की स्थापना 1993 में हुई | ठीक उसी समय हिंदी विभाग भी खोला गया | राजभाषा हिंदी के अध्ययन को स्नातक स्तर पर शुरुआत हुई | राजभाषा से जुडना एक अर्थ में “राष्ट्र” से जुडना होता है|
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राजभाषा हिंदी के बारे में कहा था “बिना राष्ट्रभाषा के राष्ट्र गूंगा होता है”| प्रस्तुत उक्तिके अनुसार राष्ट्रीय चेतना को व्यक्त करने वाली भाषा हिंदी रही हैं| वर्तमान काल में प्रस्तुत भाषा के अध्ययन की नित नई संभावानाएँ खुल रही हैं| भूमंडलीकरण, निजीकरण, उदारीकरण के चलते भाषा की स्थिति और गति नये सिरे से परिभाषित करने का समय आ गया हैं| हिंदी केवल भारत की ही नहीं दुनिया की संपर्क भाषा, रोजगार की भाषा, दुनिया के मनुष्यों को जोडनेवाली भाषा बनती जा रही हैं| हिंदी अपने समय, समाज और मानव सभ्यता की आवश्यकताओं के अनुसार ढल रही हैं| वर्तमान में प्रयोजनमूलक हिंदी, प्रौद्योगिकी की हिंदी, संगणक की हिंदी, मीडिया की हिंदी, प्रशासन की हिंदी तथा रोजगारपरक हिंदी आदि रूप में विकसित हुई हैं| जीवन के विविध क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ हिंदी भाषा ने भी खुद को युग की मांग के अनुसार विकसित किया है|दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में आज हिंदी पढ़ाई जा रही है| भाषा का बाज़ारीकरण जरूर हुआ है किंतु हिंदी बाजार की जरुरतों की पूर्ती हिंदी कर रही है|
विभाग में पूर्णकालिक रूप में दो अध्यापक कार्यरत हैं| इनमे से डॉ.सतीश यादव प्राध्यापक के रूप में तथा हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं| डॉ.अर्जुन कसबे सहयोगी प्राध्यापक के रूप में में कार्यरत हैं| दोनों स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाडा विश्वविद्यालय, नांदेड के हिंदी शोध निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं| डॉ.सतीश यादव के शोध निर्देशन में आठ विद्यार्थियों ने पीएच.डी. उपाधि हेतु पंजीकरण किया है जिसमे से छह विद्यार्थियों को पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई हैं| डॉ.अर्जुन कसबे के शोध निर्देशन में दो विद्यार्थियों ने पीएच.डी. उपाधि हेतु पंजीकरण किया हैंजिसमे से एक विद्यार्थी को पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई हैं | विशेष उल्लेखनीय बात यह है की दोनों को यू.जी.सी. ने बृहत शोध परियोजना के अंतर्गत मंजूरी मिली हैं| डॉ सतीश यादव “अज्ञेय और मर्ढेकर के साहित्य का आधुनिकता के संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन” विषय के अंतर्गत कार्य कर रहे हैं| जिन्हें यू.जी.सी. ने रू. 3,23,000/- की धनराशि आबंटित की है| डॉ अर्जुन कसबे “हिंदी उपन्यासों में चित्रित आदिवासी जनजीवन” विषय के अंतर्गत बृहत शोध परियोजना के तहत कार्य कर रहे हैं| उन्हें यू.जी.सी. ने रू. 4,25,000/- की धनराशि आबंटित की है| यह विभाग की महती उपलब्धि है|
डॉ.सतीश यादव विश्वविद्यालय के हिंदी अध्ययन मंडल के सदस्य के रूप में विगत 10 वर्षों से कार्यरत हैं| वे इसी महाविद्यालय में पूर्णकालिक प्राचार्य के रूप में दि.07-01-2008 से 15-10-2010 तक कार्यरत थे| वे तीन बार कार्यवाहक प्राचार्य के रूप में भी कार्यरत रहे हैं| डॉ सतीश यादव साहित्य, समाज, कला और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत ‘लातूर जिला हिंदी साहित्य परिषद, लातूर’ के अध्यक्ष के रूप में विद्यमान हैं| संत कबीर प्रतिष्ठान, लातूर की कार्यसमिति के सदस्य रूप में भी जुडे हुए हैं| उन्हीं के नेतुत्व में परिषद ने कार्यशाला, संगोष्ठी, नाट्यमंचन तथा भवन निर्माण जैसे कार्य पूर्ण किये हैं| डॉ. अर्जुन कसबे भी लातूर जिला हिंदी साहित्य परिषद, लातूर के आजीव सदस्य हैंऔर कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में कार्य कर चुके हैं| संत कबीर प्रतिष्ठान, लातूर की कार्यसमिति के आजीव सदस्य के रूप में भी जुड़े हुए हैं| हिंदी विभाग निरंतर विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति का मंच देने हेतु प्रतिबद्ध है| विशेषतः “कालजयी” मुखपत्र विभाग की ओर से निरंतर चलाया जाता है| विभाग के इस मुखपत्र में छात्र-छात्राएँ अपनी अभिव्याक्तियाँ देते रहते हैं| विभाग की ओर से सन 2017 में ‘ग.मा. मुक्तिबोध की जन्मशती के अवसर पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी’ का आयोजन किया गया| अंततः इतना ही कहा जा सकता है कि, हिंदी विभाग हिंदी भाषा, साहित्य, समाज और संस्कृति का परिचय ही नहीं उन्हें गहरे रूप में विद्यार्थियों को जोड़ने हेतु प्रयत्नरत हैं| वैश्विक मनुष्यों के वेदना से विद्यार्थियों को अवगत करते हुएउन्हें बेहतर मनुष्य बनाने की दिशा में विभाग पहल कर रहा है| भाषिक कौशल विकास एवं विद्यार्थियों को रोजगारपरकता से हिंदी से जोड़ते हुए संवेदनशीलता के फैलाव में महती भूमिका निभा रहा है| गज़लकार हनुमंत नायडू ने ठीक ही लिखा है-
“सामने खड़ी हो जब नंगी सदी, सभ्यता का हर दिखावा व्यर्थ है,
आदमी के दर्द को समझे बिना आदमी होने का दावा व्यर्थ है|”
अ.क्र. | Photo | अध्यापकों का नाम | शैक्षिक योग्यता | पद | अनुभव | Biodata |
१. | प्रो.(डॉ.) सतीश वसंतराव यादव | एम.ए.,पीएच.डी. | प्राध्यापक | 26 वर्ष | Biodata | |
२. | डॉ. अर्जुन शंकरराव कसबे | एम.ए.,पीएच.डी. | सहयोगी प्राध्यापक | 26 वर्ष | Biodata |